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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

श्राद्ध-कर्म का वर्णन

 

मदालसा बोली- बेटा! गृहस्थके कर्म तीन प्रकारके हैं। नित्य, नैमित्तिक तथा नित्यनैमित्तिक। इनका वर्णन सुनो। पञ्चयज्ञसम्बन्धी कर्म, जिसका अभी वर्णन किया है, नित्य कहलाता है। पुत्र- जन्म आदिके उपलक्षमें किये हुए कर्मको नैमित्तिक कहते हैं। पर्वके अवसरपर जो श्राद्ध आदि किये जाते हैं, उन्हें विद्वान् पुरुषोंको नित्यनैमित्तिक कर्म समझना चाहिये। उनमेंसे नैमित्तिक कर्मका वर्णन करती हूँ। आभ्युदयिक श्राद्ध नैमित्तिक कर्म है, जिसे पुत्र-जन्मके अवसरपर जातकर्म संस्कारके साथ करना चाहिये। विवाह आदिमें भी, जिस क्रमसे वह बताया गया है, भलीभाँति उसका अनुष्ठान करना उचित है। नान्दीमुख नामके जो पितर हैं, उन्हींका इसमें पूजन करना चाहिये और उन्हें दधिमिश्रित जौके पिण्ड देने चाहिये। उस समय यजमानको एकाग्रचित्त होकर उत्तर या पूर्वकी ओर मुँह करके बैठना चाहिये। कुछ लोगोंका मत है कि इसमें बलिवैश्वदेव कर्म नहीं होता। आभ्युदयिक श्राद्धमें युग्म ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करना और प्रदक्षिणापूर्वक उनका पूजन करना उचित है। यह वृद्धिके अवसरोंपर किया जानेवाला नैमित्तिक श्राद्ध है। इससे भिन्न और्ध्वदैहिक श्राद्ध है, जो मृत्युके पश्चात् किया जाता है।

मृत व्यक्ति जिस दिन (तिथिमें) मरा हो, उस तिथिको एकोद्दिष्ट श्राद्ध करना चाहिये; उसका वर्णन सुनो। उसमें विश्वेदेवोंकी पूजा नहीं होती। एक ही पवित्रकका उपयोग किया जाता है। आवाहन तथा अग्नौकरणकी क्रिया भी नहीं होती। ब्राह्मणके उच्छिष्टके समीप प्रेतको तिल और जलके साथ अपसव्य होकर (जनेऊको दाहिने कंधेपर डालकर) उसके नाम-गोत्रका स्मरण करते हुए एक पिण्ड देना चाहिये। तत्पश्चात् हाथमें जल लेकर कहे-'अमुकके श्राद्धमें दिया हुआ अन्न-पान आदि अक्षय हो।' यह कहकर वह जल पिण्डपर छोड़ दे; फिर ब्राह्मणोंका विसर्जन करते समय कहे-'अभिरम्यताम्' (आपलोग सब तरहसे प्रसन्न हों)। उस समय ब्राह्मणलोग यह कहें-'अभिरताः स्मः' (हम भलीभाँति सन्तुष्ट हैं)।

यह एकोद्दिष्ट श्राद्ध एक वर्षतक प्रतिमास करना उचित है। वर्ष पूरा होनेपर जब भी श्राद्ध किया जाय, पहले सपिण्डीकरण करना आवश्यक होता है। उसकी भी विधि बतलायी जाती है-यह सपिण्डीकरण भी विश्वेदेवोंकी पूजासे रहित होता है। इसमें भी एक ही अर्घ्य और एक ही पवित्रकका विधान है। अग्नौकरण और आवाहनकी क्रिया इसमें भी नहीं होती। इसमें अपसव्य होकर अयुग्म ब्राह्मणोंको भोजन कराना चाहिये। इसमें जो विशेष क्रिया है, उसे बतलाती हूँ, एकाग्रचित्तसे सुनो। इसमें तिल, चन्दन और जलसे युक्त चार पात्र होते हैं; उनमेंसे तीन तो पितरोंके लि ये और एक प्रेतके लिये होता है। प्रेतके पात्र और अर्घ्यको लेकर 'ये समानाः समनसः पितरो यमराज्ये' इत्यादि मन्त्रका जप करते हुए पितरोंके तीनों पात्रोंमें सींचना चाहिये। शेष कार्य पूर्ववत् करना चाहिये। स्त्रियोंके लिये भी ऐसे ही एकोद्दिष्टका विधान है। यदि पुत्र न हो तो स्त्रियोंका सपिण्डीकरण नहीं होता। पुरुषोंको उचित है कि वे स्त्रियोंके लिये भी प्रतिवर्ष उनकी मृत्युतिथिको विधिपूर्वक एकोद्दिष्ट श्राद्ध करें। उनके लिये भी पुरुषोंके समान ही विधान है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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